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ग़ज़ल
बज़्म-ए-याराँ जो सजाता हूँ सो ख़ुश रहता हूँ
ग़म को आवाज़ बनाता हूँ सो ख़ुश रहता हूँ
शहनवाज़ अहमद
ग़ज़ल
आते हैं बज़्म-ए-याराँ में पहचान ही गया
मय-ख़्वार की निगाह को मय-ख़्वार देख कर
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
बज़्म-ए-याराँ में मिरे फ़न पे है उँगली उट्ठी
फिर मिरी फ़िक्र पे बोहतान लगा ज़िंदाबाद
काज़िम हुसैन काज़िम
ग़ज़ल
वो कौन शख़्स था कल रात बज़्म-ए-याराँ में
जो क़हक़हों में भी शामिल था सोगवार भी था
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
बज़्म-ए-याराँ है ये साक़ी मय नहीं तो ग़म न कर
कितने हैं जो मय-कदा बर-दोश हैं यारों के बीच
गणेश बिहारी तर्ज़
ग़ज़ल
बज़्म-ए-याराँ में वो अब कैफ़ कहाँ है बाक़ी
रोज़ जाते हैं कहीं जी को जलाने अपने